Thursday 10 October 2013

भोगी और त्यागी

दुनिया मे दो तरह के लोग मुख्यत पाये जाते हैं. पहला सब कुछ पकडने वाला, जिसे हम भोगी कहते है. इस तरह  भोगी सब कुछ जो कि अपनाने लायक ना हो वे उसको भी अपना लेते है . कूडा भी संभाल कर रख लेते है शायद बाद मे काम आयेगा. जबकि दूसरी तरफ वे लोग जो सब कुछ छोडने वाले होते हैं जिन्हे हम त्यागी कहते है. त्यागी भी भोगियो से पृथक नही है बल्कि उल्टा खडे हो कर शीर्षाशन कि मुद्रा मे है. वे उस को भी त्याग देते है जो कि अपनाने योग्य है.

दोनो ही अविवेकी है- भोगी भी और त्यागी भी! भोगी का अविवेक है वह सोचता है जो भी है उसे पकड लो.  क्या असत्य को पकड ले? त्यागी का अविवेक है जो कहता है जो भी है फेंक दो. क्या सत्य को भी फेंक दे? 

गीता इन प्रश्नों के समाधान का मार्ग प्रशस्त करती है और वह मार्ग है निष्काम कर्म का जिसमे आप कर्म करते हुये भी कर्म मे लिप्त नही होते है. यह रास्ता भोग और त्याग की ओर नही बल्कि हमे सदुपयोग की ओर ले जाता है. 

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