Sunday 20 October 2013

कामधेनु की "अल कबीर यात्रा"

गाय की हत्या के सन्दर्भ यह तर्क दिया जाता है कि वे आर्थिक रूप से अनुपयोगी है।  आम आदमी और प्रशासन इस कुतर्क के फेर में आने लगा है।  इसका उदहारण गौवंश में आती निरंतर कमी और गाय के साथ अत्याचार है।  भारत  सरकार ने दुबई के गुलाम मोहम्मद शेख की सहायता से ४०० करोड़ रुपये का प्रोजेक्ट "अल कबीर : गौवधशाला" की स्थापना की है गायों के  क़त्ल की जघन्य  और क्रूरतम विधि का प्रयोग इस वधशाला में किया जाता है. काटने से पूर्व उन्हें चार दिन तक भूखा रख कर उनपर गर्म पानी डाला जाता है. इस प्रकार की हत्या का उद्देश्य केवल और केवल मुद्रा कमाना है. गायों को अनुपयोगी घोषित कर उन्हें मरने के लिए छोड़ दिया जाता है। आंकड़ो के अनुसार भारत में ३६०० कत्लखाने है जिनमे लगभग ५०००० गएँ प्रतीदिन कटती है।  हिन्दुस्तान जहाँ गाय को माँ का दर्जा मिला है वहा पर ये आकंडे दर्शाते है कि हमारी कथनी और करनी में कितना फर्क है।  गाय की दुर्दशा देश की दुर्दशा है।  अगर गौवध इसी तरह से चलता रहा तो वह दिन दूर नही जब आने  वाली पीढियां  इसे या तो इतिहास की पुस्तकों में देखेगी या चिड़ियाघर में। 

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