Tuesday 12 November 2013

शान्ति का रहस्य


आपूर्यमाणमचलप्रतिष्ठं समुद्रमापः प्रविशन्ति  यद्वत्। 
तद्वत्कामा यं प्रविशन्ति सर्वे स शान्तिमाप्नोति न कामकामी।।

जो पुरुष समुन्द्र में निरन्तर प्रवेश करती रहने वाली नदियों के समान इच्छाओं के निरन्तर  प्रवाह से विचलित नहीं होता और जो सदैव स्थिर रहता है , वही शान्ति  प्राप्त कर सकता है , वह नहीं जो ऐसी इच्छाओं को तुष्ट करने की चेष्टा करता हो। 

A person who is not disturbed by the incessant flow of desires--that enter like rivers into the ocean which is ever being filled but is always still--can alone achieve peace, and not the man who strives to satisfy such desires.

1 comment:

  1. शांति के एकमात्र और अनंत स्रोत : हरे कृष्णा

    ReplyDelete