Wednesday 27 November 2013

निर्दिष्ट कर्म कभी पाप से प्रभावित नहीं होते


श्रेयान्स्वधर्मो विगुणः परधर्मोत्स्वनुष्ठितात्। 
स्वभावनियतं कर्म कुर्वन्नाप्नोति किल्बिषम्।।

अपने वृत्तिपरक कार्य को करना , चाहे वह कितना ही त्रुटिपूर्ण ढंग से क्यों न किया जाये , अन्य किसी के कार्य को स्वीकार करने तथा अच्छी प्रकार करने की अपेक्षा अधिक श्रेष्ठ है। अपने स्वभाव के अनुसार निर्दिष्ट कर्म कभी पाप से प्रभावित नहीं होते। 

Although there may be imperfections in their execution, it is better to remain faithful to one's natural prescribed duties than to perform another's duties immaculately. Sin is never incurred by a man conforming to his natural duties.   

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