यज्ञ का महत्व
ऋषियों
द्वारा
ईश्वरीय
चिंतन
में निरत जीवन पद्धति खोजी गई जिसमें यज्ञ से मानव मन में स्थापित वांछित लाभ पाया जा सकता है। इस विधि व्यवस्था को त्रिकाल संध्या के रूप में ऋषियों ने भी अपनाया और यज्ञ के अध्यात्म को अवतारी सत्ताओं ने भी स्वीकारा।
यज्ञं जनयन्त सूरयः। -ऋग्वेद 10/66/2
हे विद्वानों! संसार में यज्ञ का प्रचार करो।
अयं यज्ञो विश्वस्य भुवनस्य नाभिः। -अथर्ववेद 9.15.14
यह यज्ञ ही समस्त विश्व-ब्रह्मांड का मूल केंद्र है।
यज्ञं जनयन्त सूरयः। -ऋग्वेद 10/66/2
हे विद्वानों! संसार में यज्ञ का प्रचार करो।
अयं यज्ञो विश्वस्य भुवनस्य नाभिः। -अथर्ववेद 9.15.14
यह यज्ञ ही समस्त विश्व-ब्रह्मांड का मूल केंद्र है।
प्रांचं यज्ञं प्रणयता सखायः। -ऋग्वेद 10/101/2
प्रत्येक शुभकार्य को यज्ञ के साथ आरंभ करो।
सर्वा बाधा निवृत्यर्थं सर्वान् देवान् यजेद् बुधः। -शिवपुराण
सभी बाधाओं की निवृत्ति के लिए बुद्धिमान पुरुषों को देवताओं की यज्ञ के द्वारा पूजा करनी चाहिए।
यज्ञो वै श्रेष्ठतमं कर्म। -शतपथ ब्राह्मण 1.7.1.5
यज्ञ ही संसार का सर्वश्रेष्ठ शुभ कार्य है।तस्मात् सर्वगतं ब्रह्मा नित्यं यज्ञे प्रतिष्ठितम्। -गीता 3.15
यज्ञ में सर्वव्यापी सर्वांतर्यामी परमात्मा का सदैव वास होता है।
प्रत्येक शुभकार्य को यज्ञ के साथ आरंभ करो।
सर्वा बाधा निवृत्यर्थं सर्वान् देवान् यजेद् बुधः। -शिवपुराण
सभी बाधाओं की निवृत्ति के लिए बुद्धिमान पुरुषों को देवताओं की यज्ञ के द्वारा पूजा करनी चाहिए।
यज्ञो वै श्रेष्ठतमं कर्म। -शतपथ ब्राह्मण 1.7.1.5
यज्ञ ही संसार का सर्वश्रेष्ठ शुभ कार्य है।तस्मात् सर्वगतं ब्रह्मा नित्यं यज्ञे प्रतिष्ठितम्। -गीता 3.15
यज्ञ में सर्वव्यापी सर्वांतर्यामी परमात्मा का सदैव वास होता है।
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